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मुंडन क्यों कराया जाता है, इसके पीछे छुपे कई राज

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आप सभी ने अपने घरों में अक्सर देखा होगा की बच्चों का मुंडन होता है, ऐसे क्या सोच रहे हो आपका भी हुआ होगा। जहां परिवार वाले चाहते हैं, वहां मुंडन होता है। ज्यादातर लोग मंदिर जाकर ही मुंडन करवाते हैं। मुंडन संस्‍कार आमतौर पर बच्‍चे के जन्‍म के एक साल के अंदर ही किया जाता है, लेकिन मराठी समुदाय में बच्‍चे के 7 साल का होने तक मुंडन संस्‍कार किया जा सकता है। कुछ जगह मुंडन संस्‍कार की परंपरा शादी की तरह बहुत धूमधाम से निभाई जाती है। हर जगह अपने-अपने रीतिरिवाज के अनुसार होता है।

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मुंडन संस्‍कार कैसे होता है

मुंडन संस्‍कार आमतौर पर बच्चे के पहली साल के आखिर में या फिर तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष में किया जाता है। बच्‍चे के बाल उतारने की इस प्रक्रिया में घर-परिवार के अलावा रिश्‍तेदार भी हिस्‍सा लेते हैं। इसमें धार्मिक अनुष्‍ठान के बाद बच्‍चों के बाल उतारे जाते हैं, फिर उसके सिर पर हल्‍दी से स्‍वास्तिक बनाया जाता है, या पूरे सिर पर ही हल्‍दी का लेप लगाया जाता है। इस मौके पर कुछ अन्‍य रीति-रिवाज भी होते हैं।

मुंडन संस्‍कार के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

बच्चों का मुंडन संस्कार करने के पीछे कई वैज्ञानिक और धार्मिक कारण हैं। धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार, मुंडन संस्कार के बाद ही बच्चे का दिमागी विकास सही ढंग से हो पाता है। वहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो नवजात शिशु के बाल में कई तरह की अशुद्धियां होती हैं, इसलिए इन्हें काटना बेहतर होता है। ऐसा करने से बच्‍चों का कई तरह के इंफेक्‍शन से बचाव होता है और उसके मन-मस्तिष्‍क पर बुरा असर नहीं पड़ता है।

वहीं मुंडन के बाद सिर पर हल्‍दी लगाने का भी बड़ा महत्‍व है। हिंदू धर्म में हल्‍दी का संबंध भगवान विष्‍णु और गुरु ग्रह से है। बच्‍चे का मुंडन करने के बाद हल्‍दी लगाने से उसका सौभाग्‍य बढ़ता है। वहीं वैज्ञानिक नजर से देखें तो हल्दी एंटीबायोटिक की तरह काम करती है और मुंडन के बाद बच्‍चे को बीमारियों से बचाती है।

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