एक नेता जिसे स्कूल के समय से ही एडवेंचर पसंद था। बाद में वो प्लेन उड़ाने लगा। उन्होंने स्वतंत्रता सग्रांम में भाग लिया, एक नहीं बल्कि दो देशों के सग्रांम में। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खतरनाक क्रिमिनल बता कर जेल में रखा गया। वो आजाद भारत में राजनीति में सक्रिय रहा। दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री और एक दफा केंद्र में मंत्री भी रहे। हम बात कर रहे है बीजू पटनायक की। बीजू पटनायक (1916-1997) भारत के एकमात्र व्यक्ति हैं जिनकी मृत्यु पर उनके शरीर को तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा गया था।
बी़जू पटनायक के पार्थीव शरीर को तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज में क्यों लपेटा गया ये जानने से पहले उनकी लड़ाकू छवि और खतरों से खेलने की क्षमता की चर्चा करना लाजमी हो जाता है।
बीजू पटनायक साहसी पायलट और बड़े राजनेता
बीजू पटनायक का जन्म उड़ीसा के कटक में 5 मार्च 1916 को हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण पटनायक और माता का नाम आशालता देवी था। बीजू अपने कॉलेज के दिनों में प्रतिभावान खिलाड़ी थे और यूनिवर्सिटी की फुटबॉल, हॉकी और एथलेटिक्स टीम का नेतृत्व करते थे। वह तीन साल तक लगातार स्पोर्ट्स चैंपियन रहे।
बचपन से ही उनकी रुचि हवाई जहाज उड़ाने में थी। इसलिए उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब और एयरनोटिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में पायलट का प्रशिक्षण लेने के लिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। वह एक प्रख्यात पायलट और नेविगेटर बन गए। बीजू पटनायक ने इंडियन नेशनल एयरवेज ज्वाइन कर ली और एक पायलट बन गए। 1940-42 के दौरान जब स्वतंत्रता का संघर्ष जारी था, वह एयर ट्रांसपोर्ट कमांड के प्रमुख थे।
इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों को जकार्ता से बचाकर लाए
उन्हें आधुनिक ओडिशा का शिल्पकार भी माना जाता है। इसके अलावा पटनायक को एक वाकये के लिए हमेशा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर याद किया जाता है। दरअसल इंडोनेशिया की आज़ादी में बीजू पटनायक की अहम भूमिका रही थी। प्राचीन समय से ही भारत और इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंध रहे हैं इसलिए नेहरू की दिलचस्पी इंडोनेशिया की स्वतंत्रता की लड़ाई में भी थी।
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उपनिवेशवाद के खिलाफ थे और उन्होंने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया को डचों से मुक्त कराने में मदद करने की जिम्मेदारी दी थी। इंडोनेशिया कभी डच यानी हालैंड का उपनिवेश था और डच ने इंडोनेशिया के काफी बड़े इलाके पर कब्जा किया था और डच सैनिकों ने इंडोनेशिया के आसपास के सारे समुद्र को टच कंट्रोल करके रखा था और वह किसी भी इंडोनेशियन नागरिक को बाहर नहीं जाने देते थे।
उस वक्त इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सजाहरीर को एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए भारत आना था लेकिन डच ने इसकी इजाजत नहीं दी थी। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने भारत से मदद मांगी और इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने बीजू पटनायक से मदद मांगी।
बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ने अपनी जान की परवाह किए बगैर एक डकोटा प्लेन लेकर डच के कंट्रोल एरिया के ऊपर से उड़ान भरते हुए वे उनकी धरती पर उतरे और बेहद बहादुरी का परिचय देकर इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री को सिंगापुर होते हुए सुरक्षित भारत ले आए। इससे इंडोनेशिया के लोगों में एक असीम ऊर्जा का संचार हुआ और उन्होंने डच सैनिकों पर धावा बोला और इंडोनेशिया एक पूर्ण आजाद देश बना।
इस बहादुरी के काम के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई और उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान ‘भूमि पुत्र’ से नवाज़ा गया था। बीजू पटनायक के निधन के बाद इंडोनेशिया में सात दिनों का राजकीय शोक मनाया गया था और रूस में एक दिन के लिए राजकीय शोक मनाया गया था तथा सारे झंडे झुका दिए गए थे।
तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज से क्यों लपेटा गया बीजू पटनायक को
ऐसे ही एक और किस्सा है की जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ संकट में घिर गया था तब बीजू पटनायक ने लड़ाकू विमान डकोटा उड़ा कर हिटलर की सेनाओं पर काफी बमबारी की थी जिससे हिटलर पीछे हटने को मजबूर हो गया था।उनकी इस बहादुरी पर उन्हें सोवियत संघ का सर्वोच्च पुरस्कार भी दिया गया था और उन्हें सोवियत संघ ने अपनी नागरिकता प्रदान की थी।
इसलिए भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्ति बीजू पटनायक है जिन के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा गया था। भारत,रूस और इंडोनेशिया ये तीन देश है ।