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बाहुबली राजन तिवारी: वो डॉन जिसका BJP से जुड़ने का सपना नहीं हुआ था साकार

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योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही राजन तिवारी को माफिया घोषित कर दिया गया था। उनका नाम यूपी के टॉप 61 माफिया की लिस्ट में शामिल है।

राजन तिवारी
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 उत्तर भारत में अपराध और राजनीति का चोली दामन साथ रहा है। अपराध के रास्ते पर चलते हुए कई मोस्ट वांटेड खादी कपड़ा पहनकर नेतागिरी शुरू कर देते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसकी लिस्ट तो काफी लंबी है। इसी लिस्ट में एक नाम है राजन तिवारी (Rajan Tiwari) का।

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90 के दशक के कुख्यात बदमाश श्रीप्रकाश शुक्ला की संगत में आने के बाद राजन तिवारी बड़ा नाम हो गया। एक वक्त में उत्तर प्रदेश के मोस्ट वॉन्टेड राजन तिवारी बतौर विधायक बिहार विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। लेकिन आज उनका नाम यूपी के टॉप 61 माफिया की लिस्ट में शामिल है। राजन तिवारी के अपराध से सियासत तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है आज हम उसी पर चर्चा करेंगे।

यूपी के टॉप 61 माफिया की लिस्ट में है राजन तिवारी

योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही राजन को माफिया घोषित कर दिया गया था। राजन का जब आपराधिक इतिहास निकलवाया गया तो पता चला कि वह आठ मर्डर, अपहरण, अवैध वसूली समेत 40 से ज्यादा मुकदमों में आरोपित है।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्में राजन तिवारी ने कॉलेज के वक्त से ही अपराध की राह पकड़ ली थी। वो बेहद साधारण परिवार से है। राजन तिवारी के पिता पेशे से वकील थे। यह वह दौर था जब पूर्वांचल में माफियाओं की तूती बोलती थी और वर्चस्व की जंग में लगभग हर रोज हत्याएं हुआ करती थीं।

साल 1995-96 में गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजन तिवारी जब पढ़ाई करता था और उसी दौर में अपराधियों के संगत में आया। उस समय पूर्वांचल में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अपराध की दुनिया में अपनी धाक जमा दी थी। श्रीप्रकाश को देखते हुए राजन तिवारी ने भी उसका दामन थाम लिया। धीरे-धीरे यह दोनों अपराध की दुनिया में काफी चर्चित होती गई और एक के बाद एक ताबड़तोड़ कई हत्याएं करके इन तीनों ने गोरखपुर में दहशत मचा दी।

श्रीप्रकाश शुक्ला का राइट हैंड

धीरे-धीरे राजन तिवारी अपने कद के चलते श्रीप्रकाश शुक्ला का राइट हैंड बन गया, यहीं से उसके नाम के आगे बाहुबली जुड़ गया। राजन का नाम सबसे ज्यादा पहली बार तब चर्चा में आया, जब 1996 में गोरखपुर कैंट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही पर हुए हमला हुआ।

यह घटना गोरखपुर के शास्त्री चौक पर उस समय हुई जब वीरेंद्र शाही अपने घर से निकलकर शहर में जा रहे थे कि घटना में वीरेंद्र शाही गंभीर रूप से घायल हुए और उनका गनर मारा गया। इसी घटना के बाद राजन तिवारी यूपी पुलिस के लिए वांटेड बन गया।

शाही पर हुए हमलों के बाद राजन फरारी काटने बिहार चला गया। इसके बाद उसने बिहार पूर्वी चंपारण को अपना ठिकाना बना लिया। फिर बिहार के अपराध जगत में भी राजन ने खूब नाम कमाया। वहां रिश्ते में उसके मामा लगने वाले गोविंदगंज के विधायक देवेंद्र दुबे के साथ रहा। इस दौरान देवेन्द्र की हत्या हो गई। इस हत्याकांड में बिहार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का नाम आया।

बाद में 1998 में प्रसाद की भी हत्या हो गई। इस हत्याकांड में भी श्रीप्रकाश और राजन तिवारी का नाम प्रमुखता से आया। यह माना गया कि राजन ने अपने मामा की हत्या का बदला लिया। राजन ने सियासत के गलियारे में अपना रसूख बना रखा था। जेल जाने से पहले राजन ने अपने ऊपर लगे दाग को छुपाने के लिए खादी पहन ली। वह राजनीति में सक्रिय हो गए थे। यही वजह है कि जेल जाने से पहले और रिहा होने के बाद भी राजनीति में सक्रिय रहे।

बीजेपी से जुड़ने के प्रयास पर हुआ था विवाद

उन्होंने वर्ष 2000 में गोविंदगंज सीट से निर्दलीय विधानसभा का चुनाव जीता था। चुनाव के दौरान जेल में बंद थे। इस हत्याकांड में राजन तिवारी को निचली अदालत से उम्रकैद की सजा भी हुई, लेकिन सबूतों के अभाव में साल 2014 में पटना हाईकोर्ट से उसे बरी कर दिया।

बिहार में जब नीतीश की सरकार बनी उसके बाद से राजन तिवारी पर शिकंजा कसना शुरू हुआ और वह बिहार से भागकर उत्तर प्रदेश पहुंचा और यहां की सियासत में अपना भाग्य आजमाने लगा।  पहले राजन 2016 में बीएसपी ज्वाइन किया, लेकिन वहां से टिकट नहीं मिला।

बाद राजन तिवारी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लखनऊ में बीजेपी की सदस्यता ली थी। इसपर काफी विवाद हुआ जिसके बाद उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। अपने मकसद में कामयाब न होने पर राजन ने बिहार की राजनीति में वापसी कर ली।

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