R.D. Burman: संगीत के वैज्ञानिक, जिन्होंने गिलासों और सैंड पेपर से निकाली धुनें गिलासों के टकराने की आवाज सुनते ही फिल्म ‘यादों की बारात’ का मशहूर गाना ‘चुरा लिया है तुमने’ बरबस ही याद आ जाता है। इस गाने को क्रिएट करने के लिए आर.डी. बर्मन, जिन्हें पंचम दा के नाम से भी जाना जाता है, ने गिलासों का इस्तेमाल किया था। फिल्म ‘जमाने को दिखाना है’ के गाने ‘होगा तुमसे प्यारा कौन’ में रेलगाड़ी की आवाज लाने के लिए उन्होंने सैंड पेपर का उपयोग किया था। सैंड पेपर को रगड़ने से ट्रेन की आवाज उत्पन्न होती है।
पंचम दा ने सोडा-वाटर की बोतलों से भी संगीत क्रिएट किया था। फिल्म ‘खुशबू’ के गाने ‘ओ मांझी रे’ के लिए उन्हें गांव वाला फील लाने के लिए आटा चक्की की आवाज चाहिए थी। इसके लिए उन्होंने सोडा-वाटर की दो बोतलों को फूंककर एक खास ध्वनि उत्पन्न की। फिल्म ‘किताब’ के गाने ‘मास्टरजी की चिट्ठी’ में स्कूल बेंच का उपयोग किया गया। फिल्म ‘शोले’ के गीत ‘महबूबा-महबूबा’ के लिए उन्होंने आधी भरी बोतल के सिरे पर फूंक मारकर धुन निकाली।
60 से 80 के दशक के बीच कई सुपरहिट गीत देने वाले आर.डी. बर्मन का आज 85वां जन्मदिन है। उन्होंने वेस्टर्न म्यूजिक का फ्यूजन तैयार करने वाले पहले संगीतकार के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। 27 जून 1939 को कोलकाता में जन्मे पंचम दा को संगीत के वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता है। म्यूजिक डायरेक्टर और सिंगर सोमेश माथुर बताते हैं कि पंचम दा किसी भी गाने को कंपोज करने में इस कदर डूब जाते थे कि उनके आसपास कौन है, यह भी उन्हें पता नहीं चलता था। उन्हें नए प्रयोगों का शौक था।
हर गीतकार के लिए उनका अलग नजरिया होता था। चाहे वह गुलजार साहब हों, आनंद बक्शी, मजरूह सुल्तानपुरी या कोई और, पंचम दा हर राइटर की रूह को समझते थे। उन्होंने टेक्नोलॉजी के कम साधनों के बावजूद नए-नए साउंड क्रिएट किए। उनकी धुन बनाने की अप्रोच बहुत अलग रहती थी। उन्हें इंडियन सिनेमा में वेस्टर्न म्यूजिक का फ्यूजन तैयार करने के लिए भी जाना जाता है।
पंचम दा की क्रिएटिविटी को आज के म्यूजिक डायरेक्टर फॉलो करते हैं। संगीतकार निखिल-विनय जोड़ी के निखिल कामत कहते हैं, “पंचम दा म्यूजिक के बाइबिल थे। उन्होंने हर तरह के गाने बनाए और हर गीतकारों के साथ अलग-अलग काम किया।” भजन सम्राट अनूप जलोटा ने कहा, “पंचम दा बहुत ही गुणी कलाकार थे। क्लासिकल म्यूजिक से बहुत प्रेम करते थे और हर युग के लिए संगीत बनाते थे।”
आर.डी. बर्मन को संगीत विरासत में मिला था। उनके पिता सचिन देव बर्मन बॉलीवुड के बड़े संगीतकारों में से एक थे। नौ साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला गाना ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ कंपोज किया था, जिसका इस्तेमाल उनके पिता ने 1956 की फिल्म ‘फंटूश’ में किया था।
आर.डी. बर्मन को पहला ब्रेक 1959 में फिल्म ‘राज’ में मिला था, लेकिन यह फिल्म पूरी न हो सकी। दो साल बाद उन्हें महमूद की फिल्म ‘छोटे नवाब’ में संगीत देने का मौका मिला। लेकिन असली पहचान फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ से मिली।
90 के दशक तक आते-आते पंचम दा कमजोर पड़ गए थे। तब उनकी जगह नए म्यूजिक कंपोजर आ चुके थे। विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ के लिए जब उन्हें अप्रोच किया तो पंचम दा भावुक हो गए। इस फिल्म के सभी गाने सुपरहिट हुए, लेकिन पंचम दा अपनी आखिरी सफलता को देखने से पहले ही दुनिया से विदा हो चुके थे। 4 जनवरी 1994 को दिल की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया।
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