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जानिए अभिनय के सरताज दिलीप कुमार के बारे में ये दिलचस्प बातें

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मुंबई। अभिनय के सरताज दिलीप कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। दिलीप कुमार ऐसे अभिनेता हैं जिनके अभिनय का जादू 6 दशकों से भी ज्यादा हम सब के सर चढ़कर बोला है। भारतीय सिनेमा के बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार दिलीप साहब को दर्शकों का, समीक्षकों का यहां तक की आलोचकों का भी भरपूर प्यार मिला। फिल्मी सितारों में दिलीप कुमार ने जो काम किया और नाम कमाया, वो अद्भुत है। डॉयलाग डिलेवरी से लेकर अदाकारी तक में उनके सामने कोई नहीं टिकता था। चाहे वह रोमांटिक हो या फिर कॉमेडी, दोनों ही जगह उनका सिक्का चलता था। अभिनय की बेहतरीन अदाकारी से उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया और अपनी अमिट छाप छोड़ी।

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दिलीप कुमार यानि युसुफ़ खान शायद ही किसी परिचय के मोहताज़ हों। बॉलीवुड के बादशाह रहे दिलीप कुमार अपने संवेदनशील अभिनय और संवाद अदायगी के लिए हमेशा सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करते रहेगें। उस दौर में जब फिल्म इंडस्ट्री में शौ मैन राज कपूर से जुबली स्टार राजेंद्र कुमार तक एक से बढ़कर एक नायक थे, दिलीप कुमार ने सत्तर एम एम के रूपहले पर्दे पर अपने लिए स्टारडम की एक अलग ही ट्रैज़िक पटकथा लिखी थी। पेशावर, तब के पाकिस्तान में जन्में दिलीप साहब का सपनों के शहर मुंबई से ताल्लुकात उनके अब्बा ज़ान की वजह से हुआ जो यहां नौकरी करते थे।

उनकी पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ थी, जो 1944 मे आई। 1949 मे बनी फिल्म अंदाज़ की सफलता ने उन्हें शोहरत दिलाई, इस फिल्म मे उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया। इसके बाद फिल्मों का सिलसिला चल पड़ा और वे शोहरत की बुलंदियों पर विराज गए।

मेला, शहीद, अंदाज, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैगाम, मुगल-ए-आजम, गंगाजमना, लीडर और राम और श्याम जैसी फिल्मों के नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और हास्य कलाकार भी। उन्होंने हर भूमिका में अपनी अलग छाप छोड़ी और वे ऑलराउंडर कहलाएं।

पच्चीस साल की उम्र में दिलीप कुमार नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से ‘दिलीप-राज-देव’ की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ।

दिलीप कुमार प्रतिष्ठित फिल्म निर्माण संस्था बॉम्बे टॉकिज की उपज हैं, जहां देविका रानी ने उन्हें काम और नाम दिया। यहीं वे यूसुफ खान से दिलीप कुमार बने।

नौशाद, मेहबूब, बिमल राय, के. आसिफ ने दिलीप के सांथ कई क्लासिक फिल्में देश को दीं। 44 साल की उम्र में अभिनेत्री सायरा बानो से विवाह करने तक दिलीप कुमार वे सब फिल्में कर चुके थे, जिनके लिए आज उन्हें याद किया जाता है।

दिलीप कुमार को 1991 में पद्महभूषण की उपाधि से नवाजा गया और 1995 में फिल्म का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘दादा साहब फालके अवॉर्ड’ भी दिया गया। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

1953 में फिल्म फेयर पुरस्कारों की शुरुआत के साथ दिलीप कुमार को फिल्म ‘दाग’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार‍ दिया गया था। अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है। अंतिम बार उन्हें साल 1982 में फिल्म ‘शक्ति’ के लिए यह इनाम दिया गया था, जबकि फिल्म फेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया था।

हिन्दी सिनेमा में सबसे सफल और चर्चित कलाकार का नाम अगर तलाशेंगे तो शायद एक ही नाम उभर कर सामने आएगा और वो हैं दिलीप कुमार। हिन्दी सिनेमा के स्वर्ण काल में दिलीप कुमार ने हिन्दी सिनेमा को सबसे अधिक सफल फिल्में दी थीं। भले ही बाद में कई सुपर स्टार बने हों, महानायक बने हों, लेकिन सच तो यह है की दिलीप कुमार की ऊंचाई को छूना हर किसी का सपना रहा है। इंडस्ट्री में आने वाला हर नया कलाकार उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखता है और उनके अभिनय से खुद को संजोता है।

भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी ज़िंदगी में जो मुकाम बनाया है, वह अच्छे-अच्छे लोगों के लिए एक सपने जैसा है। आज की नयी पीढ़ी के बहुत से लोग चाहे दिलीप कुमार की फिल्मों में महान योगदान और उनकी कई बड़ी उपलब्धियों को ना जानते हों, पर दिलीप कुमार सफलता के जिस शिखर पर पहुंचे, वहां आज तक कोई और नहीं पहुंच सका है। आज उनके जाने से फिल्मी दुनिया के सबसे स्वर्णिम युग का अंत हो गया है। हिन्दी ख़बर की तरफ से हमारे बेहतरीन अभिनेता को श्रद्धांजलि।

 

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