काबुल:15 अगस्त को जब हम और आप जब अपने कार्यलयों, स्कूलों, घरों में आज़ादी का जश्न मना रहे थे, तब हमसे ठीक 1000 मील दूर हमारा पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान सत्ता के संकट से जूझ रहा था। उसके राष्ट्रपति देश छोड़ का भाग चूके थे। लोगों में भय और डर का माहौल था । तालिबान ने लगभग पूरे देश पर कब्जा कर लिया है। अफ़ग़ानिस्तान में कब्ज़ा करते ही तालिबान ने 15 से 45 वर्ष की महिलाओं की सूची मांगी है। एक संगठन जिसने खून-खराबे और महिलाओं पर दमन कर सत्ता हासिल की हो उसकी यात्रा कैसे होगी ? महिलाओं और बच्चों पर आतंक का पर्याय बने तालिबान की हुकमत का पूरा इतिहास समझते हैं।
तालिबान शब्द का अर्थ होता है ज्ञानार्थी यानि छात्र। यह शब्द पश्तो भाषा से लिया गया है। तालिबान का जन्मदाता था मुल्ला मोहम्मद उमर । मुल्ला मोहम्मद उमर एक अफगान मुजाहिद कमांडर था जिसने
तालिबान का नेतृत्व किया, और 1996 में में इस्लामी अमीरात ऑफ अफगानिस्तान की स्थापना की। मुल्ला का जन्म कांधार प्रांत के खाखरेज जिले के चाह-इ-हिम्मत गांव में हुआ था। उमर ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में दारुल उलूम हक्कानिया से स्नातक किया। खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित करने वाला मुल्ला उमर वाकई में एक दहशतगर्द था। बेहिसाब हसरतों को पूरा करने के लिए ना जाने उसने कितने लोगों का गला रेता था। हसरत क्या थी पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करना।
तालिबानी वेबसाइट में छपी मुल्ला मुहम्मद उमर की जीवनी के अनुसार रूसी सैनिकों से लड़ते हुए मुल्ला चार बार घायल हुआ और ऐसे ही एक ज़ख़्म की निशानी है उसकी दाईं आँख। उसके गुर्गे बताते हैं कि जब मुल्ला की आँख बम के छर्रों से ज़ख्मी हुई, तो उसने खुद ही एक चाकू के इस्तेमाल से ज़ख़्मी आँख को खुद से निकाल दिया। मुल्ला उमर को 1996 में ‘अमीर उल मोमीन’ का खिताब मिला जो तालिबान के शीर्ष नेता को दिया जाता है।
सोवियत संघ के टूटने के बाद मुल्ला उमर ने वहां चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, वही से तालिबान की स्थापना हुई। समूह का गठन “मुजाहिदीन” लड़ाकों द्वारा किया गया था जिन्होंने 1980 के दशक में सीआईए के समर्थन से सोवियत सेना के खिलाफ जंग लड़ी थी।
1994 में कंधार की एक मस्जिद से लगभग 50 लोगों से तालिबान का सफ़र शुरू हुआ। 1996 तक तालिबान की अफ़ग़ानिस्तान पर पकड़ इतनी मज़बूत हो गई कि राजधानी काबुल पर भी उस समय तालिबानियों ने कब्ज़ा कर लिया। 1996 में कई प्रांतों को जीतने के बाद तालिबान ने कड़े नियम बनाए जो कि महिलाओं के लिए पाबंदी ग्रस्त थे। जैसे कि बुर्का पहनने का फरमान जारी करना, दस साल की उम्र के बाद लड़कियों पर स्कूल जाने पर रोक, नौकरी पर रोक और तो और उल्लंघन करने पर महिलाओं को निर्दयता से पीटा और पत्थर से मारा जाना भी आम बात थी। समूह पर शरिया को क्रूरता से लागू करने, हत्या या व्यभिचार के दोषी लोगों के लिए सार्वजनिक फांसी देने का आरोप था। पुरुषों को अपनी दाढ़ी कटवाने की अनुमति नही थी।
11 सितंबर 2001 में न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमलों के मास्टरमाइंड अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को अफ़ग़ानिस्तान में आश्रय देने के बाद, जब 7 अक्टूबर 2001 को अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन ने एक आक्रामक अभियान शुरू किया तब तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता से भागना पड़ा।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने वापस आने के लिए अफ़ग़ानिस्तान के पश्चिमी हिस्सों में शरण ली हुई थी और वहीं संगठन को मजबूत करने की रणनीति पर काम करते थे। फंड के लिए वे अफीम उगाते और ड्रग्स की तसकरी करते थे। संगठन को मजबूत बनाने में 4 लोगों का हाथ सबसे ज्यादा था।
2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले के बाद तालिबान के सर्वोच्च नेता के रूप में नियुक्त किया गया, हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को व्यापक रूप से सैन्य कमांडर के बजाय एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में सेवा करने के लिए चुना गया था। अख्तर मंसूर की हत्या के बाद चरमपंथी समूह को एकजुट करने में उसका महत्वपूर्ण योगदान था।
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, इसने 1970 के दशक के अंत में सोवियत संघ कब्जे के खिलाफ विद्रोही के रूप में लड़ाई लड़ी। उसने सोवियत वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत मुल्ला मोहम्मद उमर के साथ तालिबान की स्थापना की। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2010 में पाकिस्तान से गिरफ्तार किया गया था और 2018 में अमेरिका के दबाव के कारण उसे हिरासत में रखा गया था। वह अब तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है और वार्ता करने वाली टीम का हिस्सा था जिसने अमेरिकियों के साथ वापसी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
सिराजुद्दीन हक्कानी, मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है, ये हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व करता है, इसका समूह आत्मघाती हमलावरों के इस्तेमाल के लिए जाना जाता है और उस पर शीर्ष अफगान अधिकारियों की हत्या करने का आरोप लगाता आया है।
संगठन में चौथा सबसे ताकतवर नाम है- मुल्ला याकूब, तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के बेटे, मुल्ला याकूब समूह के सैन्य अभियानों का देखरेख करता है। कई उत्तराधिकार लड़ाइयों के दौरान उन्हें आंदोलन के शीर्ष नेता के तौर पर प्रस्तावित किया गया था, लेकिन याकूब ने युद्ध के अनुभव और उम्र की कमी के कारण हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को जिम्मेदारी संभालने के लिए आमंत्रित किया था। कहा जाता है तालिबान में इसकी नियुक्ति महज एक दिखावा है, ताकि तालिबान लड़ाको में इसके पिता को लेकर इसके लिए इज्जत बनी रहे और संगठन को इससे मजबूती मिले।
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