ब्लॉग: पारंपरिक धोती का लिबास, नंगे पैर, पूरानी परंपरा से लबरेज़ लेकिन कुछ नया और अनूठा करने की चाहत रखने वाली जंगल की इनसाइक्लोपीडिया तुलसी गौड़ा ने राष्ट्रपति भवन तक सफ़र तय किया। वो अब पद्मश्री तुलसी गौड़ा हैं।
77 वर्ष की कर्नाटक की तुलसी गौड़ा को हर फल, फूल पौधे की समझ है, यही कारण है उन्हें जंगल की इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है।
अपने नाम की ही तरह तुलसी ने अपने जीवन में काम किया है। क्योंकि बीते 6 दशकों से वो लगातार पेड़-पौधों की रक्षा, सुरक्षा में काम कर रही हैं। तुलसी जी ने 30 हज़ार से अधिक पौधे लगाए हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक जब तुलसी अल्प आयु थी, उम्र कुछ दो बरस की रही होगी। तब उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। जिसके बाद घर की जिम्मेदारी मां के कंधों पर आ गई थी। फिर मां के साथ ही नर्सरी जाना शुरू कर दिया।
नर्सरी में पेड़-पौधों से जुड़ा काम 70 साल की उम्र के बाद भी जारी रखा। रिटायरमेंट के बाद भी तुलसी गौड़ा लगातार पौधारोपण करती आई हैं।
ऐसे वक्त में जब धरती को बचाने के लिए दुनियाभर के नेता एकजुट होकर वृक्ष लगाने की बात करते हैं। लेकिन जानकारों की मानें तो ये वादे केवल कथनी ही हैं। आमजन को भी ऐसी कथनी और करनी में फर्म मालूम नज़र आता है।
तब कर्नाटक के एक छोटे से गांव की रहने वाली 80 की उम्र के करीब पहुंच चुकी तुलसी प्रेरणा और उम्मीद जगाती है। और तुलसी सम्मान की पूर्ण रूपी हकदार हैं।
जरा वो मंजर तो सोचिए जब देश के प्रधानमंत्री खुद प्रेमभाव से तुलसी का सत्कार करने के लिए खड़ें हैं। और उससे भी खूबसूरत तब जब राष्ट्रपति एक छोटे से गांव की तुलसी ‘सिर्फ तुलसी’ से पद्मश्री हो गईं।
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