Amjad Khan Death anniversary: भारतीय फिल्मों का इतिहास वैसे तो सैकड़ों साल पुराना है। लेकिन भारतीय सिनेमा की इस यात्रा में कुछ फिल्में मील का पत्थर साबित बन जाती हैं। ऐसी ही एक फिल्म थी शोले। जिसने भारतीय सिनेमा के इतिहास को ही बदल कर रख दिया। फिल्म ऐसी कि एक-एक किरदार और डायलॉग लोगों की जुबान पर आज भी हैं। लेकिन आज बात शोले के उस किरदार को निभाने वाले अभिनेता अमजद खान की करेंगे जिसकी अदाकारी ने किरदार को अमर बना दिया। किरदार था गब्बर नाम के एक दुर्दांत डकैत का, जिसे अमजद खान ने ऐसा निभाया कि लोग कलाकार का नाम भले ही भूल जाएं लेकिन गब्बर को भुलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा लगता है।
शोले की सफलता (Amjad Khan Death anniversary) के कई सारी वजहें मानी जा सकती हैं, लेकिन यह कहा जाए कि शोले को यादगार बनाने का काम गब्बर ने किया तो इससे बहुत कम लोगों को ही ऐतराज होगा। अमजद खान ने फिल्म में साधारण से डायलॉग को इस अंदाज में बोला कि वे डायलॉग लोगों की जुबान पर चढ़ गए। ‘कितने आदमी थे’ और ‘होली कब है, कब है होली’ जैसे डायलॉग अगर आज भी हिट हैं तो उसकी एकमात्र वजह अमजद खान की अदायगी है। लेकिन जिस शोले ने अमजद खान को शोहरत दिलाई अमजद खान उसी फिल्म को सजा मानने लगे थे। आज अमजद खान की पुण्यतिथि के मौके पर आइए जानते हैं क्या है अमजद खान के गब्बर बनने के पीछे की कहानी। साथ ही बात इसकी भी होगी कि आखिर अमजद खान के लिए शोले की कामयाबी को सजा क्यों कहा।
शोले की कहानी लिखे जाने तक गब्बर के रोल में डैनी को लिया जाना था। लेकिन दूसरी फिल्म में बिजी होने के कारण डैनी इसके लिए समय नहीं निकाल पाए। सलीम खान अमजद खान को पहले से उनकी पिता की वजह से जानते थे। सलीम खान ने किसी तरह फिल्म यूनिट को गब्बर के रोल में अमजद खान को लेने के लिए मनाया था।
सलीम खान के पिता पुलिस अधिकारी थे जिनसे सलीम खान को एक डाकू गबरा के बारे में सुनने को मिला था। गबरा बीहड़ का एक खूंखार डाकू था जो लोगों के नाक काट कर छोड़ देता था। गब्बर सिंह के इस खूंखार किरदार को लिखने की प्रेरणा सलीम खान को वहीं से मिली थी।
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गब्बर का किरदार (Amjad Khan Death anniversary) करने से पहले अमजद खान ने बीहड़ के डाकूओं के हाव-भाव और किरदार को पकड़ने के लिए एक किताब पढ़ी थी। ‘अभिशप्त चंबल’ नाम के इस किताब को पढ़कर अमजद खान ने गब्बर के किरदार की तैयारी की थी। गब्बर के बोलने के ढंग को अमजद खान ने एक धोबी से नकल की थी जो उनके गांव में रहता था। वह अपनी पत्नी को अरी ओ शांति.. कहकर बुलाता था। जिसे कॉपी करते हुए अमजद खान ने अरे ओ सांभा डायलॉग बोला जो सदा के लिए अमर हो गया।
अमजद खान को शोले ने वह शोहरत और बुलंदी दी जिसके वे असली हकदार थे। लेकिन अमजद खान इसी फिल्म की सफलता को ही अपने जीवन का अभिशाप मानने लगे थे। दरअसल शोले फिल्म करते हुए अमजद खान ने ये दुआ की थी कि अगर यह फिल्म हिट हो जाती है तो वे आगे फिल्मों में काम करना बंद कर देंगे। उनकी दुआ कुबूल हुई और शोले ने कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। लेकिन इस फिल्म की सफलता के बाद अमजद खान के पास रोल की बरसात होने लगी। अमजद खान ने वादे को तोड़ते हुए आगे भी फिल्में करनी जारी रखीं। लेकिन कुछ साल बाद ही उनका भयानक कार एक्सीडेंट हुआ। अमजद खान का मानना था कि अल्लाह से किए वादे को तोड़ने की सजा उन्हें इस रुप में मिली है।
27 जुलाई 1992 को दिल का दौरा पड़ने से अमजद खान की मौत हो गई। यह महान कलाकार आखिरकार अपनी अदायगी का तोहफा दुनिया को देकर यहां से रुखसत हो गया। अमजद खान को इस दुनिया को अलविदा कहे 30 साल हो गए। लेकिन अगले 300 साल तक या इससे आगे तक जबतक भारतीय सिनेमा का संसार रहेगा गब्बर जिंदा रहेगा, अमजद खान जिंदा रहेंगे।
रिपोर्ट- दीपक
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