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22 जुलाई: भारत का राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस, बड़ी दिलचस्‍प है तिरंगे के राष्‍ट्रध्‍वज बनने की कहानी

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Tiranga History: 15 अगस्त 1947 को भारत लगभग 200 साल बाद अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ. उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जब लाल किला के प्राचीर से भारतीय तिरंगा फहराया तो पूरे देश ने मानो एक नई अंगड़ाई ले ली हो. इस आजादी के लिए हमने न जाने कितनी कुर्बानियां सहीं और कितनी लड़ाईयां लड़ीं, उसकी कहानी कहीं न कहीं से हमने सुनी है. लेकिन उस आजादी वाले दिन जिस तिरंगे के रंग में पूरा भारत रंगा हुआ था, उसकी भी अपनी एक दास्तान है. आज हम आपको इस तिरंगे के बनने से लेकर इसे भारतीय ध्वज के रुप में अंगीकार करने तक की पूरी कहानी बताएंगे.

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भारत का राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस

हर एक आजाद मुल्क का अपना एक एक ध्‍वज होता है जो उस देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता की निशानी होता है.यह ऐसा प्रतीक है जिसके नीचे बिना किसी भेद-भाव, ऊंच-नीच की भावना के पूरा राष्ट्र एक साथ खड़ा नजर आता है. बात तब की है जब हमारी अंग्रेजों के खिलाफ भारत को आजाद की लड़ाई चल रही थी. तब इस बात की जरूरत महसूस की गई कि एक हमारे पास भी एक ऐसा ध्‍वज होना चाहिए. जिसके नीचे पूरा भारत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़ा हो सके.  

बड़ी दिलचस्‍प है तिरंगे के राष्‍ट्रध्‍वज बनने की कहानी

20 वीं सदी की शुरुआत से ही इसपर विचार होने लगा था कि देश का एक ऐसा राष्ट्रध्वज होना चाहिए जिसमें स्‍वतंत्र भारत की संपूर्णता समाहित हो. महात्‍मा गांधी ने भी ‘यंग इंडिया’ जर्नल के एक लेख में राष्‍ट्रध्‍वज की जरूरत बताई. गांधी जी ने पिंगली वेंकैया को इसकी जिममेदारी सौंपी. सबसे पहले वेंकैया ने केसरिया और हरे रंग का इस्‍तेमाल कर भारतीय ध्‍वज तैयार किया. इसमें केसरिया रंग को हिन्दू और हरे रंग को मुस्लिम समुदाय का प्रतीक माना गया. गांधी जी ने लाला हंसराज के सलाह पर झंडे के बीच में चरखा जोड़ने का सुझाव दिया जो झंडा के स्‍वदेशी होने को प्रदर्शित करता था.

जानें तिरंगे में तीन रंगों का महत्व

लेकिन बाद में यह मानते हुए कि ध्‍वज केवल दो धर्मों का प्रतिनिधित्‍व करता है, इसमें तीसरे यानि सफेद रंग को जोड़ा गया जो सर्वधर्म को प्रदर्शित करता था. बाद में महात्‍मा गांधी ने अपने संबोधन में इन तीनों रंगों का एक अलग अर्थ प्रस्तुत करते हुए केसरिया को बलिदान का, सफेद रंग को पवित्रता का और और हरे रंग उम्मीद और खुशहाली का प्रतीक बताया था. 1940 के शुरुआती दौर में जब अंग्रेजों की दासता से मुक्‍त होने की उम्‍मीद प्रबल हो चुकी थी. स्‍वतंत्रता आंदोलन चरम पर पहुंच गया. अंततः अंग्रेजों ने भारत छोड़कर जाने का फैसला किया.

ऐसे आया अस्तित्व में तिरंगा

इसी बीच भारत का नया स्‍वरूप तय करने के लिए संविधान सभा का ग‍ठन हुआ. साथ ही एक समिति और बनाई गई जिसका काम राष्‍ट्रध्‍वज के डिजाइन पर सलाह देना था. यानि संविधान निर्माण और तिरंगे की विकास यात्रा साथ-साथ चल रही थी. तिरंगे के लिए बनी इस समिति में मौलाना अबुल कलाम आजाद, सी. राजगोपालाचारी, सरोजिनी नायडू, के.एम. पणिक्‍कर, बी.आर. अम्‍बेडकर, उज्‍जल सिंह, फ्रैंक एंथनी और एस.एन. गुप्‍ता जैसी महान हस्तियां शामिल थीं. 

22 जुलाई 1947 को हुई थी संविधान सभा की बैठक

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में 10 जुलाई 1947 को समिति की पहली बैठक हुई. समिति के सदस्‍यों के अलावा बैठक में विशेष न्‍योते पर जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे. इसी बैठक में राष्‍ट्रध्‍वज के डिजाइन से जुड़ी बारीकियां तय हुईं. इस समिति की देखरेख में तिरंगे की डिजाइन में कई सारे छोटे-छोटे बदलाव किए गए. चरखे की जगह नीले रंग के अशोक चक्र को तिरंगे के बीच में स्थान दिया गया. आखिरकार डिजाइन का काम पूरा हुआ और 22 जुलाई 1947 को कॉन्‍स्‍टीट्यूशन हॉल में संविधान सभा की बैठक हुई. पंडित नेहरू ने तिरंगे को राष्‍ट्रध्‍वज के रूप में अपनाने का प्रस्‍ताव रखा जिसे सभा ने स्‍वीकार कर लिया. और इस तरह, हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज तिरंगा अस्तित्‍व में आ गया. 

पीएम ने आज के दिन साझा किया तिरंगे का इतिहास

आज 22 जुलाई है और इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ ऐतिहासिक दस्‍तावेज साझा किए हैं. जो तिरंगे के राष्‍ट्रध्‍वज बनने की कहानी बयां करते हैं. पीएम मोदी ने यह भी बताया है कि स्‍वतंत्र भारत का पहला राष्‍ट्रध्‍वज प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था. पहला राष्‍ट्रध्‍वज आज की तारीख में नई दिल्‍ली के आर्मी बैटल ऑनर्स मेस के पास है. पीएम ने 1930 में प्रकाशित ‘शहीद गर्जना’ की एक प्रति भी साझा की. झंडारोहण के समय अक्सर हम ‘विजयी विश्‍व तिरंगा प्‍यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा…’गुनगुनाते हैं, ये पंक्तियां इसी कविता का अंश हैं.

रिपोर्ट- दीपक

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