यूपी विधान परिषद में ‘Zero’ पर सिमटने वाली है कांग्रेस, पहली बार इतने बुरे हालत

उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह पहली बार होगा जब विधान परिषद से कांग्रेस शून्य (Zero) पर होगी। कांग्रेस महज दो सीटों पर सिमट गई है तो अब विधान परिषद से साफ होने जा रही है। 113 साल में पहली बार ऐसा होगा जब यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा। आजादी के पहले से लेकर लंबे समय तक उत्तर प्रदेश राज्य कांग्रेस का गढ़ा था। बता दें कि, राज्य के विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह छह जुलाई को रिटायर होने वाले हैं, वह वर्ष 2016 में चुने गए थे। दीपक सिंह के बाद पार्टी का कोई भी सदस्य विधान परिषद का हिस्सा नहीं रहेगा।
यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का इतिहास
उत्तर प्रदेश में विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council)की स्थापना 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब इसके 9 सदस्य हुआ करते थे। 1909 में बनाए गए प्रावधानों के तहत सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे। मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली, और उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है।
1947 से 1990 तक यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का पूर्ण बहुमत हुआ करता था। 1967 में पार्टी को झटका जरूर लगा और पहली बार भारत की राजनीति में गठबंधन का मुख्यमंत्री बना, लेकिन अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की। आपातकाल के बाद हुए 1977 चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका लगा और वह 215 से सीधे 47 सीटों पर लुढ़क गई।
1980 में कांग्रेस फिर से विधानसभा में प्रचंड बहुमत से वापस सरकार बनाई। ऐसे में विधान परिषद में अपनी ताकत को बनाए रखा। इसके बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटती गई, लेकिन उच्च सदन में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए पर्याप्त विधायक जीतती रही। लेकिन आजादी के बाद अब पहली बार है जब कांग्रेस की हालत इतनी बुरी हुई है।
आपको बता दें कि फिलहाल भाजपा के विधान परिषद में 66 सदस्य हैं। इसके बाद 14 मेंबर्स के साथ मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर है। वहीं अगले कुछ महीनों में विधान परिषद से 15 सदस्य रिटायर होने वाले हैं। इनमें से 10 समाजवादी पार्टी के 2 भाजपा 2 बसपा के हैं। वही कांग्रेस का सदस्य रहे दीपक सिंह भी रिटायर हो रहे हैं।