UP Chunav: साल 2013 से लेकर साल 2022 तक जिंदा है ‘दंगों का भूत’
यूपी में विधानसभा चुनावों (Assembly Election) की रणभेरी बज चुकी है. विधानसभा चुनाव का आगाज पश्चिमी यूपी यानि जाटलैंड से हो रहा है. साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के चलते बीजेपी ने 2017 विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में क्लीन स्वीप किया था और 90 फीसदी सीटें अपने नाम की थी. माना जाता है कि मुजफ्फरनगर दंगे ने यूपी में बीजेपी (BJP) की सरकार बनवाने में संजीवनी का काम किया था. बीजेपी ने सपा बसपा और कांग्रेस के सभी सियासी समीकरण को ध्वस्त कर दिया था. साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के इस समीकरण को ध्वस्त करने के लिए सपा-रालोद ने एक अचूक अस्त्र जाट-मुस्लिम कार्ड को खेला है.
मुजफ्फरनगर में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा
आपको बता दे, पश्चिमी यूपी (West UP) के मुस्लिम बहुल मुज़फ्फरनगर जिले में किसी भी सीट पर सपा-रालोद गठबंधन (SP RLD Alliance) ने कोई मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारा है. जिससे बीजेपी के ध्रुवीकरण के दांव को फेल करने की रणनीति को अपनाया. लेकिन, मेरठ मंडल की 4 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से गठबंधन की सारी कोशिशों पर पानी फिरता नजर आ रहा है. जिसको लेकर जाट महासभा ने अपनी नाराजगी जताई है और साथ ही रालोद को चुनौती दी है, जो जयंत चौधरी के लिए चिंता बढ़ा सकती है.
साल 2013, में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते जाट और मुस्लिम के बीच दूरियां पैदा हो गई थी, जिसका सियासी खामियाजा रालोद से लेकर सपा और बसपा को भुगतना पड़ा था. बीजेपी को जिले की सभी 6 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह भी जाटलैंड में अपने अभेद किले को ध्वस्त होने से नहीं बचा पाए थे. बीजेपी के संजीव बालियान ने जाटों के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले चौधरी अजित सिंह को हरा दिया था. जाट वोटों के खिसकने से रालोद के सियासी भविष्य पर संकट गहरा गया था.
किसान आंदोलन से मिली थी रालोद को ‘संजीवनी’
करीब एक साल तक चले केन्द्र सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन से रालोद को संजीवनी मिल गई थी. जिसका असर नगर निकाय चुनाव में देखने को मिला. अपना सियासी भविष्य खत्म होने की कगार पर खड़ी रालोद को नगर निकाय चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सीटें मिली. रालोद ने बीजेपी को भरपूर टक्कर दी. ऐसे में सपा रालोद गठबंधन ने मुजफ्फरनगर जिले की 6 सीटों में से किसी भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी न उतारकर बीजेपी के खिलाफ बड़ा दांव चला है. जिससे जाट और मुस्लिम वोटर गठबंधन की नैय्या पार लगा सके.
सपा रालोद की पहली लिस्ट में ‘दंगों का भूत’ किस कदर जिंदा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मीरापुर विधानसभा सीट पर पिछली बार बहुत मामूली वोटों से हारने वाले लियाकत अली को भी टिकट नहीं दिया. इतना ही नहीं बसपा छोड़कर सपा में आने वाले कद्दावर नेता कादिर राणा को भी किसी सीट पर प्रत्याशी नहीं बनाया गया है. मुस्लिमों के बीच सपा-रालोद के कैंडिडेट को लेकर नाराजगी भी दिखी, लेकिन वक्त की नजाकत को समझते हुए शांत हो गए. बीजेपी के खिलाफ गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में एकजुट हो रहे हैं. वहीं, कुछ सीटों पर बसपा के मुस्लिम कार्ड खेलने से जरूर गठबंधन के प्रत्याशियों की चिंता बढ़ गई है.
मेरठ जिले में 7 में से 4 मुस्लिम प्रत्याशी
सपा रालोद ने मुजफ्फरनगर में भले ही एक भी सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा, लेकिन मेरठ जिले की 7 में से 4 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट गठबंधन ने दे दिए हैं. मेरठ शहर विधानसभा से सपा विधायक रफीक अंसारी, किठौर से पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर और दक्षिण विधानसभा से आदिल को सपा ने टिकट दिया है जबकि रालोद ने सिवालखास सीट से गुलाम मोहम्मद को कैंडिडेट बनाया है.
मेरठ की बाकी सीटों पर गठबंधन ने हिंदू प्रत्याशी उतारे हैं. हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से पूर्व विधायक योगेश वर्मा, सरधना विधानसभा सीट से अतुल प्रधान और कैंट सीट पर आरएलडी ने मनीषा अहलावत को प्रत्याशी बनाया है. मेरठ कैंट में बाहरी प्रत्याशी दिया तो सिवालखास में मुस्लिम प्रत्याशी दिए जाने से रालोद में विरोध के सुर तेज हो गए हैं. सिवालखास सीट पर जाट समुदाय के चुनाव लड़ने की संभावना नजर आ रही थी, लेकिन सपा नेता को जयंत चौधरी ने अपना सिंबल देकर उतार दिया है.
सिवालखास चौधरी परिवार की विरासत
आपको बता दे कि, सिवालखास विधानसभा चौधरी परिवार की विरासत की सीट है. यह सीट मेरठ जिले के अंतर्गत आती है. बागपत से सटी होने के कारण यह लोकसभा क्षेत्र बागपत लगता है. इसी सीट से जयंत चौधरी के दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह 3 बार सांसद रहे जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह 6 बार सांसद चुने गए. रालोद समर्थक सिवालखास सीट पर जाट प्रत्याशी की मांग कर रहे थे, लेकिन मुस्लिम प्रत्याशी के उतारे जाने से विरोध हो रहा है. सिवालखास सीट को जाट बिरादरी अपने स्वाभिमान की लड़ाई मान रही है. वेस्ट यूपी में सपा-रालोद का गठबंधन कितना कामयाब हो पाएगा, इसका असर 10 मार्च को दिखाई देगा.