नोएडा: सुप्रीम कोर्ट का सुपरटेक एमराल्ड मामले में बड़ा फैसला लिया गया है। नोएडा में दो ट्विन 40 मंजिला टावरें गिराई जाएगी। इस सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये टॉवर नोएडा अथॉरिटी और सुपटेक की मिलीभगत से बने थे। दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में हाउसिंग सोसायटी में नियमों के उल्लंघन पर दोनों टावर गिराने के आदेश दिए थे, इसके साथ ही प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। इसके बाद सुपरटेक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी। साथ ही NBCC को जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
सुनवाई के दौरान बिल्डर का पक्ष लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण (जमकर फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं, आपके अंग-अंग से भ्रष्टाचार टपकता है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा एक्सप्रेसवे स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट केस में नोएडा प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकारियों का बचाव करने और फ्लैट बायर्स की कमियां बताने पर की। सुनवाई में नोएडा अथॉरिटी के अधिवक्ता रविंदर कुमार ने प्राधिकरण के साथ ही उसके अधिकारियों का बचाव किया और कहा कि सुपरटेक एमराल्ड मामले में सभी नियमों का पालन किया गया है।
इसके साथ ही अधिवक्ता ने फ्लैट बायर्स की कमियां भी गिनानी शुरू कर दीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह दुख की बात है कि आप पब्लिक अथॉरिटी होते हुए डेवलपर्स की ओर से बोल रहे हैं, आप कोई निजी अथॉरिटी नहीं हैं। जबकि सुपरटेक की ओर से विकास सिंह ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर टावरों को गिराने में नियमों की अनदेखी नहीं की है। सिंह ने भी फ्लैट बायर्स पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि 2009 में टावरों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था। इसके बाद भी तीन साल बाद वे हाईकोर्ट क्यों गए? इस पर जस्टिस शाह बोले कि प्राधिकरण को तटस्थ की भूमिका निभानी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि आप बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि अथॉरिटी फ्लैट बायर्स से लड़ाई लड़ रही है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच का फैसला, जस्टिस चंद्रचूड ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ये मामला नोएडा अथॉरिटी और डेवलपर के बीच मिलीभगत का एक उदाहरण है। इस मामले में सीधे-सीधे बिल्डिंग प्लान का उल्लंघन किया गया। नोएडा अथॉरिटी ने लोगों से प्लान शेयर भी नहीं किया। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट का टावरों को गिराने का फैसला बिल्कुल सही था। पर्यावरण का संरक्षण और नागरिकों की सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना था कि नोएडा एक्सप्रेस वे स्थित 40 मंजिला दोनों टावरों को गिराया जाए या नहीं। पांच अगस्त को अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा था। इस पर रविंदर कुमार ने कहा कि वह तो अथॉरिटी का पक्ष रख रहे हैं।
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