मंगलवार को मणिपुर में जारी हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा, ऐसा लगता है कि मणिपुर में राज्य की संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। वहां कोई कानून- व्यवस्था नहीं बची है। राज्य में जातीय हिंसा से संबंधित मणिपुर पुलिस की जांच की गति सुस्त है। घटना के लंबे समय बाद एफआईआर दर्ज की जाती है लेकिन गिरफ्तारी नहीं होती। बयान दर्ज नहीं किए जाते।
बताते चलें भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों सहित राज्य भर में हो रहे अपराधों की जांच करने में असमर्थ है और कानून-व्यवस्था तंत्र पूरी तरह से चरमरा गया है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है। बिल्कुल… कोई कानून-व्यवस्था नहीं बची है।”
न्यायालय ने यह टिप्पणी इस तथ्य पर गौर करने के बाद की कि 6,000 से अधिक एफआईआर दर्ज होने के बावजूद बहुत कम गिरफ्तारियां हुई हैं।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या महिलाओं को भीड़ को सौंपने वाले पुलिसकर्मियों से राज्य पुलिस ने पूछताछ की थी। उन्होंने कहा कि यदि कानून एवं व्यवस्था तंत्र लोगों की रक्षा नहीं कर सकता तो नागरिकों का क्या होगा?
SC ने आगे कहा कि राज्य पुलिस जांच करने में असमर्थ है और उन्होंने राज्य की स्थिति से अपना नियंत्रण खो दिया है। मणिपुर में कोई कानून व्यवस्था नहीं बची है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पूछा कि FIR में कितने आरोपियों के नाम हैं और उनकी गिरफ्तारी के लिए क्या कार्रवाई की गई है।
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