नई दिल्ली। साल 1984 में सियाचिन की पहाड़ियों में हुए ऑपरेशन मेघदूत की याद एक बार फिर ताजा हो गई है. 38 साल बाद हल्द्वानी के रहने वाले लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर उनके घर आया तो दो और परिवारों के ज़ख्म न केवल हरे हो गए बल्कि एक उम्मीद भी पलने लगी. असल में, इसी ऑपरेशन में शामिल हल्द्वानी के लांस नायक हयात सिंह और दया किशन जोशी का कोई पता अभी तक नहीं लग पाया है. ऐसे में इन दोनों शहीदों की पत्नियों को अब भी उम्मीद है कि सेना उनके पतियों के बारे में भी पता लगाएगी।
शहीद चंद्रशेखर हरबोला के बहाने सभी शहीद परिवारों के जख्म एक बार फिर हरे हो गए हैं. कोई अपने पति के बारे में सोच कर गमगीन है तो कोई अपने भाई या पिता के बारे में. चंद्रशेखर हरबोला की 38 साल पुरानी शहादत में उनके साथी सैन्य परिवारों का भी दर्द छिपा हुआ है, लेकिन सबकी दुआएं यही हैं कि जल्द ही दूसरे शहीदों का भी पता लग जाए. सेना के पूर्व ऑफिसर भी उम्मीद कर रहे हैं कि इन शहीदों की भी खोज होगी. पूर्व जिला सैनिक कल्याण अधिकारी और रिटायर्ड मेजर बीएस रौतेला का कहना है कि जल्द ही सेना की तरफ से कोई खबर मिले तो परिवारों की प्रतीक्षा खत्म हो।
गौरतलब है कि आज बुधवार को हरबोला का पार्थिव शरीर हल्द्वानी पहुंचा और राजकीय सम्मान के साथ हरबोला को अंतिम विदाई दी गई. इस मौके पर हरबोला को आखिरी सलामी देने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे और उन्होंने कहा कि देश के लिए हरबोला के योगदान को याद रखा जाएगा और परिवार की हर संभव मदद सरकार करेगी।
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