देश में एक बार फिर धर्म को लेकर कई मामले सुर्खियों में आने लगे हैं। मिली जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है। आपको बता दें कि अदालत ने इन अर्जियों पर 11 अक्टूबर से सुनवाई करने का फैसला भी ले लिया है।
इस मामले की सुनवाई 4 जजों के द्वारा की जाएगी। अदालत की ओर से इन याचिकाओं को लेकर नोटिस भी जारी किए गए हैं। अर्जी दाखिल करने वाले एक याची ने काशी और मथुरा की अदालतों ने इसी अधिनियम का जिक्र करते हुए फैसले सुनाए हैं।
चीफ जस्टिस यूयू ललित (Uday Umesh Lalit)ने कहा कि शीर्ष अदालत काशी और मथुरा की अदालतों की ओर से जारी सुनवाई पर रोक नहीं लगाएगी। इसी कड़ी में उन्होंने ये भी कहा कि जिला अदालतों में चल रही सुनवाइयों को जारी रखने दिया जाए।
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि इस मसले में अब तक केंद्र सरकार की ओर से किसी प्रकार का उत्तर नहीं आया है। यही नहीं सॉलिसिटर जनरल ने इस मामले में जवाब देने के लिए और ज्यादा वक्त की मांग की है। पूजा स्थल अधिनियम को संसद से 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था।
भारत के संविधान में 1991 में लागू प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट में साफ तौर पर स्पष्ट है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। ज्ञानवापी मस्जिद और कृष्णजन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण की सुनवाई में इस अधिनियम का कई बार जिक्र हुआ है।
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