नई दिल्ली। देश में बने नए संसद की छत पर अशोक स्तंभ का मुद्दा सियासत की राजनीति में गहराता जा रहा है. वही अभी हाल में बीते सोमवार को पीएम मोदी ने इसका अनावारण किया था. जिसके बाद से विपक्ष ने नए स्तंभ को लेकर कई आरोप लगाए जिसके बाद से सभी विपक्ष पार्टियां भी सोकर उठ गई है उनका कहना है कि नए अशोक स्तंभ के साथ छेड़छाड़ की गई है और उसको नया आकार देकर बनाया गया है।
आइये जानते हैं नए स्तंभ की क्या खासियत है? इसकी आकृति को लेकर किस तरह का विवाद है? मूल अशोक स्तंभ का इतिहास क्या है और ये कहां स्थित है? अशोक स्तंभ का इस्तेमाल कहां-कहां होता है? इस स्तंभ को राष्ट्रीय चिह्न का दर्जा कब मिला? राष्ट्रीय चिह्न को लेकर हमारा कानून क्या कहता है?
नए स्तंभ की क्या खासियत है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस विशाल अशोक स्तंभ का अनावरण किया उसका वजन 9500 किलोग्राम है। कांस्य से बने इस राष्ट्रीय चिह्न की ऊंचाई 6.5 मीटर है। देश के विभिन्न हिस्सों के 100 से अधिक कारीगरों और शिल्पकारों ने इसे तैयार किया है। इसे बनाने में नौ महीने से अधिक का वक्त लगा। उच्च शुद्धता वाले कांस्य से बने प्रतीक को जमीन से 33 मीटर ऊपर स्थापित किया गया है।
इसे सहारा देने वाले ढांचे समेत इसका कुल वजन 16,000 किलोग्राम है। राष्ट्रीय प्रतीक का वजन 9,500 किलोग्राम है और इसे सहारा देने वाले ढांचे का वजन 6,500 किलोग्राम है। नए संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाने का काम आठ अलग-अलग चरणों से पूरा किया गया। इसमें मिट्टी से मॉडल बनाने से लेकर कंप्यूटर ग्राफिक तैयार करना और कांस्य निर्मित आकृति को पॉलिश करना शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशाल अशोक स्तंभ का अनावरण किया। – फोटो : सोशल मीडिया
इसकी आकृति को लेकर किस तरह का विवाद है?
विवाद अशोक स्तंभ में लगे शेर की मुद्रा पर हो रहा है। विपक्ष का आरोप है कि राष्ट्रीय चिह्न में जो शेर हैं वो शांत हैं, उनका मुंह बंद है। वहीं, नए संसद भवन में लगे अशोक स्तंभ के शेर आक्रामक दिखते हैं, उनका मुंह खुला हुआ है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया कि अब सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते की ओर जा रहे हैं।
मूल अशोक स्तंभ का इतिहास क्या है और ये कहां स्थित है?
अशोक स्तंभ की कहानी 273 ईसा पूर्व में शुरू होती है। उस वक्त मौर्य वंश के तीसरे शासक सम्राट अशोक का शासन था। सम्राट अशोक का साम्राज्य तक्षशिला से मैसूर तक, बांग्लादेश से ईरान तक फैला हुआ था। अपने शासनकाल में अशोक ने कई जगहों पर स्तंभ स्थापित करवाए। इसके जरिए उन्होंने ये संदेश दिया कि यह राज्य उनके अधीन है।
इन स्तंभों में शेर की आकृति बनी है। वाराणसी के नजदीक सारनाथ और भोपाल के करीब सांची में बने स्तंभ में शेर शांत दिखते हैं। कहा जाता है कि ये दोनों प्रतीक अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद बनवाए गए थे। राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किए गए अशोक स्तंभ को सारनाथ से लिया गया है।
इस स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर बैठे हैं और सभी की पीठ एक दूसरे से सटी हुई है। राजचिह्न में चार शेर हैं, पर इसमें से सिर्फ तीन ही दिखाई देते हैं। एक शेर आकृति के पीछे छिप जाता है। अशोक स्तंभ के चार शेर शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गौरव का प्रतीक हैं।
राष्ट्रीय चिह्न में एक और चीज जो अशोक स्तंभ से ली गई है, वो है अशोक चक्र। अशोक चक्र को राष्ट्रध्वज में देखा जाता है। यह बौद्ध धर्मचक्र का चित्रण है। इसमें 24 तीलियां हैं। अशोक चक्र को कर्तव्य का पहिया भी कहा जाता है। इसमें मौजूद तीलियां मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं। इसी चक्र को भारतीय तिरंगे के मध्य भाग में रखा गया है।
अशोक स्तंभ के निचले हिस्से पर पूर्व दिशा की ओर हाथी, पश्चिम की ओर बैल, दक्षिण की ओर घोड़ा और उत्तर की ओर शेर है। इस पूरे चिन्ह को कमल के फूल की आकृति के ऊपर उकेरा गया है। यह स्तंभ सारनाथ के पास उस जगह को चिन्हित करने के लिए बनाया गया था, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किए गए अशोक स्तंभ को सारनाथ से लिया गया है। – फोटो : सोशल मीडिया
शेर और सारनाथ का क्या महत्व है?
बौद्ध धर्म में शेर को भगवान बुद्ध का पर्याय माना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने जिस जगह से बौद्ध धर्म के प्रचार की शुरुआत ही वह आज सारनाथ के नाम से जानी जाती है। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने यहां यह स्तंभ बनवाया था। आजादी के बाद इसे राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया गया। इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई।
इस स्तंभ को राष्ट्रीय चिह्न का दर्जा कब मिला? भारत सरकार ने अशोक स्तंभ को राजचिह्न के रूप में 26 जनवरी 1950 को अपनाया था। अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिह्न के तौर पर इसलिए चुना गया था क्योंकि यह संयमित शक्ति और शांति का प्रतिनिधित्व करता है। अहम सरकारी दस्तावेजों, मुद्राओं पर अशोक स्तंभ दिखायी देता है।
अशोक स्तंभ – file photo
राष्ट्रीय चिह्न को लेकर हमारा कानून क्या कहता है?
1950 में जब अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिह्न माना गया तो उसको लेकर कुछ नियम भी बनाए गए। जैसे- अशोक स्तंभ का इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही कर सकते हैं। इसमें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधायक, राज्यपाल, उपराज्यपाल और उच्च अधिकारी शामिल हैं। लेकिन सेवानिवृत्त होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। आम नागरिक भी इसका उपयोग नहीं कर सकता है। ऐसा करने पर उसे दो साल की कैद या पांच हजार रुपये जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है।
जयपुर के लक्ष्मण व्यास और गौतम व्यास ने बनाया अशोक स्तंभ। – फोटो : अमर उजाला
इस पूरे विवाद पर सरकार और मूर्ति बनाने वालों का क्या पक्ष है?
केंद्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय चिह्न में कोई बदलाव नहीं किया गया है। सरकार ओर से तर्क दिया जा रहा है कि सारनाथ का अशोक स्तंभ 1.6 मीटर लंबा है और संसद की नई इमारत पर लगाया गया स्तंभ 6.5 मीटर लंबा है, सारनाथ के अशोक स्तंभ से चार गुना लंबा होने और फोटो खींचने के कोण की वजह से शेर आक्रामक दिख रहे हैं।
सत्ता पक्ष के प्रवक्ताओं का कहना है कि सौंदर्य की तरह ‘शांति और आक्रोश’ लोगों की आंखों में होता है। राष्ट्रीय चिह्न बनाने वाले कलाकार सुनील देवरे का कहना है कि इसके डिजाइन में कोई बदलाव नहीं किया गया है। उनका कहना है कि मूल आकृति से बड़ी मूर्ति नीचे से देखने में अलग लग सकती है।
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