कार के टायर अकसर 40 हजार किलोमीटर चलने के बाद घिस जाते हैं। लेकिन अगर हम कार चलाते हुए शुरू से ही कुछ सावधानियां बरतें तो जल्दी से टायर बदलवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। टायर रोटेशन करवा कर, टायर में हवा का प्रेशर ठीक रखकर हम इनकी ड्यूल बिलटी बढ़ा सकते हैं। कार के फ्रंट टायर की बजाय रियर टायर अधिक घिसते हैं। कार एक्सपर्ट कहते हैं कि करीब 5 हजार किलोमीटर चलने के बाद कार के टायर रोटेट कर सकते हैं।
यानि आगे के टायर पीछे और पीछे के टायर आगे लगा सकते हैं। टायरों में हवा का प्रेशर मानक अनुसार रखें। प्रेशर कम या ज्यादा दोनों टायरों को नुकसान पहुंचाता है। ट्यूब वाले टायर और ट्यूबलेस टायर दोनों ही सही होते हैं। दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। ट्यूब वाले टायर में अगर हवा कम होती है तो अंदर ट्यूब और टायर के बीच घर्षण बढ़ जाता है। इससे वाहन की ऊर्जा खपत बढ़ जाती है। टायर में हवा समय-समय पर जांच करवाएं।
ट्यूबलेस टायर में घर्षण नहीं होता है। इसमें रोलिंग रेजिस्टेंस की समस्या नहीं है। ट्यूबलेस टायर सीधे रिम से जुड़ा हुआ होता है। स्पीड पर कार चलाने पर चालक को स्टेबिलिटी और बेहतर हैंडलिंग महसूस होती है। वहीं, कार में नॉर्मल एयर की जगह नाइट्रोजन गैस भरवानी चाहिए। इससे टायर गर्म कम होते हैं। नॉर्मल एयर या टायर में हवा का प्रेशर ठीक नहीं होने पर कार में सड़क की सतह और टायर के बीच घर्षण अधिक होता है। ऐसे में टायर फटने का डर बना रहता है।
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